About Origin of Maheshwari Community – When? Where? How? Who? Why? | माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति – कब? कहाँ? कैसे? किसने? क्यों? | Mahesh Navami, Maheshwari Samaj Ka Utpatti Diwas

माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति के बारे में कब हुई? कहाँ हुई? कैसे हुई? किसने की? क्यों की? सब कुछ


Origin day of Maheshwari community means Maheshwari Vanshotpatti Diwas is known as Mahesh Navami. Mahesh Navami is a historical and religious festival of Maheshwari community. Mahesh Navami is the festival which Maheshwari peoples (Maheshwari Samaj) celebrates as the origin day/foundation day of Maheshwari dynasty / Maheshwarism (Maheshwaritva), founded in 3133 BC. Every Maheshwari must know about when did his community originate? How did it happen? Who did it? Why was it done? Only if he is aware of this, he will be able to know what a proud and respected community he is a part of, how glorious is the history of his community. To know this, this article helps you a lot, after reading it you will definitely feel joy, happiness and pride. So definitely read this article completely...

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माहेश्वरी समाज का उत्पत्ति दिवस यानि माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिवस को महेश नवमी के नाम से जाना जाता है। महेश नवमी माहेश्वरी समाज का एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक त्यौहार है। महेश नवमी वह त्योहार है जिसे माहेश्वरी लोग (माहेश्वरी समाज) 3133 ईसा पूर्व में स्थापित माहेश्वरी वंश / माहेश्वरीत्व के स्थापना दिवस के रूप में मनाते हैं। हरएक माहेश्वरी को इस बारे में जानकारी होनी ही चाहिए की अपने समाज की उत्पत्ति कब हुई? कैसे हुई? किसने की? क्यों की? इसकी जानकारी होगी तभी तो वह जान पायेगा की वह कितने गौरवशाली तथा सम्मानित समाज का अंग है, उसके समाज का इतिहास कितना गौरवपूर्ण और वैभवशाली है। इसे जानने के लिए यह लेख आपकी काफी मदद करता है, इसे पढ़कर आपको जरूर आनंद, ख़ुशी और गर्व की अनुभूति होगी। तो जरूर इस लेख को पुरा पढ़ें...

Know, When did Maheshwari community originate? How did it happen? Who did it? Why was it done?



खंडेलपुर (इसे खंडेलानगर और खंडिल्ल के नाम से भी उल्लेखित किया जाता है) नामक राज्य में सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा खड्गलसेन राज्य करता था। इसके राज्य में सारी प्रजा सुख और शांती से रहती थी। राजा धर्मावतार और प्रजाप्रेमी था, परन्तु राजा का कोई पुत्र नहीं था। खड्गलसेन इस बात को लेकर चिंतित रहता था कि पुत्र नहीं होने पर उत्तराधिकारी कौन होगा। खड्गलसेन की चिंता को जानकर मत्स्यराज ने परामर्श दिया कि आप पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं, इससे पुत्र की प्राप्ति होगी। राजा खड्गलसेन ने मंत्रियों से मंत्रणा कर के धोसीगिरी से ऋषियों को ससम्मान आमंत्रित कर पुत्रेस्ठी यज्ञ कराया। पुत्रेष्टि यज्ञ के विधिपूर्वक पूर्ण होने पर यज्ञ से प्राप्त हवि को राजा खड्गलसेन और महारानी को प्रसादस्वरूप में भक्षण करने के लिए देते हुए ऋषियों ने आशीवाद दिया और साथ-साथ यह भी कहा की तुम्हारा पुत्र बहुत पराक्रमी और चक्रवर्ती होगा पर उसे 16 साल की उम्र तक उत्तर दिशा की ओर न जाने देना, अन्यथा आपकी अकाल मृत्यु होगी। कुछ समयोपरांत महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। राजा ने पुत्र जन्म उत्सव बहुत ही हर्ष उल्लास से मनाया, उसका नाम सुजानसेन रखा। यथासमय उसकी शिक्षा प्रारम्भ की गई। थोड़े ही समय में वह राजकाज विद्या और शस्त्र विद्या में आगे बढ़ने लगा। तथासमय सुजानसेन का विवाह चन्द्रावती के साथ हुवा। दैवयोग से एक जैन मुनि खंडेलपुर आए। कुवर सुजान उनसे बहुत प्रभावित हुवा। उसने अनेको जैन मंदिर बनवाएं और जैन धर्म का प्रचार-प्रसार शुरू कर दिया। जैनमत के प्रचार-प्रसार की धुन में वह भगवान विष्णु, भगवान शिव और देवी भगवती को माननेवाले, इनकी आराधना-उपासना करनेवाले आम प्रजाजनों को ही नहीं बल्कि ऋषि-मुनियों को भी प्रताड़ित करने लगा, उनपर अत्याचार करने लगा।

ऋषियों द्वारा कही बात के कारन सुजानसेन को उत्तर दिशा में जाने नहीं दिया जाता था लेकिन एक दिन राजकुवर सुजानसेन 72 उमरावो को लेकर हठपूर्वक जंगल में उत्तर दिशा की और ही गया। उत्तर दिशामें सूर्य कुंड के पास जाकर देखा की वहाँ महर्षि पराशर की अगुवाई में सारस्वत, ग्वाला, गौतम, श्रृंगी और दाधीच ऋषि यज्ञ कर रहे है, वेद ध्वनि बोल रहे है, यह देख वह आगबबुला हो गया और क्रोधित होकर बोला इस दिशा में ऋषि-मुनि शिव की भक्ति करते है, यज्ञ करते है इसलिए पिताजी मुझे इधर आने से रोकते थे। उसने क्रोध में आकर उमरावों को आदेश दिया की इसी समय यज्ञ का विध्वंस कर दो, यज्ञ सामग्री नष्ट कर दो और ऋषि-मुनियों के आश्रम नष्ट कर दो। राजकुमार की आज्ञा पालन के लिए आगे बढे उमरावों को देखकर ऋषि भी क्रोध में आ गए और उन्होंने श्राप दिया की सब निष्प्राण बन जाओ। श्राप देते ही राजकुवर सहित 72 उमराव निष्प्राण, पत्थरवत बन गए। जब यह समाचार राजा खड्गलसेन ने सुना तो अपने प्राण तज दिए। राजा के साथ उनकी 8 रानिया सती हुई।

राजकुवर की कुवरानी चन्द्रावती 72 उमरावों की पत्नियों के सहित रुदन करती हुई उन्ही ऋषियो की शरण में गई जिन्होंने इनके पतियों को श्राप दिया था। ये उन ऋषियो के चरणों में गिर पड़ी और क्षमायाचना करते हुए श्राप वापस लेने की विनती की तब ऋषियो ने उषाप दिया की- जब देवी पार्वती के कहने पर भगवान महेश्वर इनमें प्राणशक्ति प्रवाहित करेंगे तब ये पुनः जीवित व शुद्ध बुद्धि हो जायेंगे। महेश-पार्वती के शीघ्र प्रसन्नता का उपाय पूछने पर ऋषियों ने कहा की- यहाँ निकट ही एक गुफा है, वहाँ जाकर भगवान महेश का अष्टाक्षर मंत्र "ॐ नमो महेश्वराय" का जाप करो। राजकुवरानी सारी स्त्रियों सहित गुफा में गई और मंत्र तपस्या में लीन हो गई। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान महेशजी देवी पार्वती के साथ वहा आये। पार्वती ने इन जडत्व मूर्तियों को देखा और अपनी अंतर्दृष्टि से इसके बारे में जान लिया। महेश-पार्वती ने मंत्रजाप में लीन राजकुवरानी एवं सभी उमराओं की स्त्रियों के सम्मुख आकर कहा की- तुम्हारी तपस्या देखकर हम अति प्रसन्न है और तुम्हें वरदान देने के लिए आयें हैं, वर मांगो। इस पर राजकुवरानी ने देवी पार्वती से वर मांगा की- हम सभी के पति ऋषियों के श्राप से निष्प्राण हो गए है अतः आप भगवान महेशजी कहकर इनका श्रापमोचन करवायें। पार्वती ने 'तथास्तु' कहा और भगवान महेशजी से प्रार्थना की और फिर भगवान महेशजी ने सुजानसेन और सभी 72 उमरावों में प्राणशक्ति प्रवाहित करके उन्हें चेतन (जीवित) कर दिया।

चेतन अवस्था में आते ही सभीने महेश-पार्वती का वंदन किया और अपने अपराध पर क्षमा याचना की। इसपर भगवान महेश ने कहा की- अपने क्षत्रियत्व के मद में तुमने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है। तुमसे यज्ञ में बाधा डालने का पाप हुवा है, इसके प्रायश्चित के लिए अपने-अपने हथियारों को लेकर सूर्यकुंड में स्नान करो। ऐसा करते ही उन सभी के हथियार पानी में गल गए। स्नान करने के उपरान्त सभी भगवान महेश-पार्वती की जयजयकार करने लगे। फिर भगवान महेशजी ने कहा की- सूर्यकुंड में स्नान करने से तुम्हारे सभी पापों का प्रायश्चित हो गया है तथा तुम्हारा क्षत्रितत्व एवं पूर्व कर्म भी नष्ट हो गये है। यह तुम्हारा नया जीवन है इसलिए अब तुम्हारा नया वंश चलेगा। तुम्हारे वंशपर हमारी छाप रहेगी। देवी महेश्वरी (पार्वती) के द्वारा तुम्हारी पत्नियों को दिए वरदान के कारन तुम्हे नया जीवन मिला है इसलिए तुम्हे 'माहेश्वरी' के नाम से जाना जायेगा। तुम हमारी (महेश-पार्वती) संतान की तरह माने जाओगे। तुम दिव्य गुणों को धारण करनेवाले होंगे। द्यूत, मद्यपान और परस्त्रीगमन इन त्रिदोषों से मुक्त होंगे। अब तुम्हारे लिए युद्धकर्म (जीवनयापन/उदरनिर्वाह के लिए योद्धा/सैनिक का कार्य करना) निषिद्ध (वर्जित) है। अब तुम अपने परिवार के जीवनयापन/उदरनिर्वाह के लिए वाणिज्य कर्म करोगे, तुम इसमें खूब फुलोगे-फलोगे। जगत में धन-सम्पदा के धनि के रूप में तुम्हारी पहचान होगी। धनि और दानी के नाम से तुम्हारी ख्याति होगी। श्रेष्ठ कहलावोगे (*आगे चलकर श्रेष्ठ शब्द का अपभ्रंश होकर 'सेठ' कहा जाने लगा) तुम जो धन-अन्न-धान्य दान करेंगे उसे माताभाग (माता का भाग) कहा जायेगा, इससे तुम्हे बरकत रहेगी।

अब राजकुवर और उमरावों में स्त्रियों (पत्नियोंको) को स्वीकार करने को लेकर असमंजस दिखाई दिया। उन्होंने कहा की- हमारा नया जन्म हुवा है, हम तो “माहेश्वरी’’ बन गए है पर ये अभी क्षत्रानिया है। हम इन्हें कैसे स्वीकार करे। तब माता पार्वती ने कहा तुम सभी स्त्री-पुरुष हमारी (महेश-पार्वती) चार बार परिक्रमा करो, जो जिसकी पत्नी है अपने आप गठबंधन हो जायेगा। इसपर राजकुवरानी ने पार्वती से कहा की- माते, पहले तो हमारे पति क्षत्रिय थे, हथियारबन्द थे तो हमारी और हमारे मान की रक्षा करते थे अब हमारी और हमारे मान की रक्षा ये कैसे करेंगे तब पार्वती ने सभी को दिव्य कट्यार (कटार) दी और कहाँ की अब तुम्हारा कर्म युद्ध करना नहीं बल्कि वाणिज्य कार्य (व्यापार-उद्यम) करना है लेकिन अपने स्त्रियों की और मान की रक्षा के लिए सदैव 'कट्यार' (कटार) को धारण करेंगे। मै शक्ति स्वयं इसमे बिराजमान रहूंगी। तब सब ने महेश-पार्वति की चार बार परिक्रमा की तो जो जिसकी पत्नी है उनका अपनेआप गठबंधन हो गया (एक-दो जगह पर, 13 स्त्रियों ने भी कट्यार धारण करके गठबंधन की परिक्रमा करने का उल्लेख मिलता है)।

इसके बाद सभी ने सपत्नीक महेश-पार्वती को प्रणाम किया। अपने नए जीवन के प्रति चिंतित, आशंकित माहेश्वरीयों को देखकर देवी महेश्वरी उन्हें भयमुक्त करने के लिए यह कहकर की- “सर्वं खल्विदमेवाहं नान्यदस्ति सनातनम् l” ‘समस्त जगत मैं ही हूँ। इस सृष्टि में कुछ भी नहीं था तब भी मैं थीं। मैं ही इस सृष्टि का आदि स्रोत हूँ। मैं सनातन हूँ। मैं ही परब्रह्म, परम-ज्योति, प्रणव-रूपिणी तथा युगल रूप धारिणी हूं। मैं नित्य स्वरूपा एवं कार्य कारण रूपिणी हूं। मैं ही सब कुछ हूं। मुझ से अलग किसी का वजूद ही नहीं है। मेरे किये से ही सबकुछ होता है इसलिए तुम सब अपने मन को आशंकाओं से मुक्त कर दो’ ऐसा कहकर देवी महेश्वरी (पार्वती) नें सभी को दिव्यदृष्टि दी और अपने आदिशक्ति स्वरुप का दर्शन कराया। दिखाया की शिव ही शक्ति है और शक्ति ही शिव है l ‘शिवस्याभ्यन्तरे शक्तिः शक्तेरभ्यन्तरेशिवः।’ शक्ति शिव में निहित है, शिव शक्ति में निहित हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव और शक्ति अर्थात महाकाल और महाकाली, महेश्वर और महेश्वरी, महादेव और महादेवी, महेश और पार्वती तो एक ही है, जो दो अलग-अलग रूपों में अलग-अलग कार्य करते है। महेश-पार्वती के सामरस्य से ही यह सृष्टि संभव हुई। आदिशक्ति ने पलभर में अगणित (जिसको गिनना असंभव हो) ब्रह्मांडों का दर्शन करा दिया जिसमें वह समस्त दिखा जो मनुष्य नें देखा या सुना हुवा है और वह भी दिखा जिसे मानव ने ना सुना है, ना देखा है, न ही कभी देख पाएगा और ना उनका वर्णन ही कर पाएगा। तत्पश्चात अर्धनरनारीश्वर स्वरुप में शरीर के आधे भाग में महेश (शिव) और आधे भाग में पार्वती (शक्ति) का रूप दिखाकर सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति (पालन), परिवर्तन और लय (संहार); महेश (शिव) एवं पार्वती (शक्ति) अर्थात (संकल्पशक्ति और क्रियाशक्ति) के अधीन होनेका बोध कराया। चामुण्डा स्वरुप का दर्शन कराया जिसमें दिखाया की- “महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी” देवी महेश्वरी की ही तीन शक्तियां है जो बलशक्ति, ज्ञानशक्ति और ऐश्वर्यशक्ति (धनशक्ति) के रूप में अर्थात इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति और क्रियाशक्ति के रूप में कार्य करती है जिसके फलस्वरूप सृष्टि के सञ्चालन का कार्य संपन्न हो रहा है। महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी इन्ही त्रयीशक्तियों का सम्मिलित/एकत्रित रूप है चामुण्डा जो स्वयं आदिशक्ति देवी महेश्वरी ही है। आगे महाकाली के अंशशक्तियों नवदुर्गा और दसमहाविद्या तथा महालक्ष्मी की अंशशक्तियों अष्टलक्ष्मियों का दर्शन कराया। अंततः यह सभी शक्तियां मूल शक्ति (आदिशक्ति) देवी महेश्वरी में समाहित हो गई। तब आश्चर्यचकित, रोमांचित, भावविभोर होकर सभी ने सिर नवाकर हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए कहा की- हे माते, आप ही जगतजननी हो, जगतमाता हो। आपकी महिमा अनंत है। आपके इस आदिशक्ति रूप को देखकर हमारा मन सभी चिन्ताओं, आशंकाओं से मुक्त हो गया है। हम अपने भीतर दिव्य चेतना, दिव्य ऊर्जा और प्रसन्नता का अनुभव कर रहे है। हे माते, आपकी जय हो। हमपर आपकी कृपा निरंतर बरसती रहे। देवी ने कहा, मेरा जो आदिशक्ति रूप तुमने देखा है उसे देख पाना अत्यंत दुर्लभ है। केवल अनन्य भक्ति के द्वारा ही मेरे इस आदिशक्ति रूप का साक्षात दर्शन किया जा सकता है । जो मनुष्य अपने सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को, मनोकामनाओं से मुक्त रहकर केवल मेरे प्रति समर्पित करता है, मेरे भक्ति में स्थित रहता है वह मनुष्य निश्चित रूप से मेरी कृपा को प्राप्त करता है। वह मनुष्य निश्चित रूप से परम आनंद को, परम सुख को प्राप्त करता है।

फिर भगवान महेशजी ने सुजानसेन को कहा की अब तुम इनकी वंशावली रखने का कार्य करोगे, तुम्हे 'जागा' कहा जायेगा। तुम इन माहेश्वरीयों के वंश की जानकारी रखोंगे, विवाह-संबन्ध जोड़ने में मदत करोगे और ये हर समय, यथा शक्ति द्रव्य देकर तुम्हारी मदत करेंगे। तत्पश्चात ऋषियों ने महेश-पार्वती को हाथ जोड़कर वंदन किया और भगवान महेशजी से कहा की- प्रभु इन्होने हमारे यज्ञ का विध्वंस किया और आपने इन्हें श्राप मोचन (श्राप से मुक्त) कर दिया। इस पर भगवान महेशजी ने ऋषियो से कहा- आपको इनका (माहेश्वरीयों का) गुरुपद देता हूँ। आजसे आप माहेश्वरीयोंके गुरु हो। आपको 'गुरुमहाराज' के नाम से जाना जायेगा। आपका दायित्व है की आप इन सबको धर्म के मार्गपर चलनेका मार्गदर्शन करते रहेंगे।

भगवान महेशजी ने सभी माहेश्वरीयों को उपदेश दिया कि आज से यह ऋषि तुम्हारे गुरु है। आप इनके द्वारा अनुशाषित होंगे। एक बार देवी पार्वती के जिज्ञासापूर्ण अनुरोध पर मैंने पार्वती को जो बताया था वह पुनः तुम्हे बताता हूँ- गुरुर्देवो गुरुर्धर्मो गुरौ निष्ठा परं तपः l गुरोः परतरं नास्ति त्रिवारं कथयामि ते ll अर्थात "गुरु ही देव हैं, गुरु ही धर्म हैं, गुरु में निष्ठा ही परम तप है। गुरु से अधिक और कुछ नहीं है यह मैं तीन बार कहता हूँ। गुरु और गुरुतत्व को बताते हुए महेशजी ने कहा की, गुरु मात्र कोई व्यक्ति नहीं है अपितु गुरुत्व (गुरु-तत्व) तो व्यक्ति के ज्ञान में समाहित है। उसे वैभव, ऐश्वर्य, सौंदर्य अथवा आयु से नापा नहीं जा सकता। गुरु अंगुली पकड़कर नहीं चलाता, गुरु अपने ज्ञान से शिष्य का मार्ग प्रकाशित करता है। चलना शिष्य को ही पड़ता है। जैसे मै और पार्वती अभिन्न है वैसे ही मै और गुरुत्व (गुरु-तत्व) अभिन्न है। इस तरह से गुरु व गुरुतत्व के बारे में बताने के पश्चात महेश भगवान पार्वतीजी सहित वहां से अंतर्ध्यान हो गये।

उमरावों के चेतन होने के शुभ समाचार को जानकर उनके सन्तानादि परिजन भी वहां पर आ गए। पूरा वृतांत सुनने के बाद ऋषियों के कहने पर उन सभी ने सूर्यकुंड में स्नान किया। ऋषियों ने,
“स्वस्त्यस्तु ते कुशलमस्तु चिरायुरस्तु, विद्याविवेककृतिकौशलसिद्धिरस्तु l
ऐश्वर्यमस्तु विजयोऽस्तु गुरुभक्ति रस्तु, वंशे सदैव भवतां हि सुदिव्यमस्तु ll”
(अर्थ - आप सदैव आनंद से, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें। विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें। ऐश्वर्य व सफलता को प्राप्त करें तथा गुरु भक्ति बनी रहे। आपका वंश सदैव तेजस्वी एवं दिव्य गुणों को धारण करनेवाला बना रहे।) इस मंत्र का उच्चारण करते हुए सभी के हाथों में रक्षासूत्र (कलावा) बांधा और उज्वल भविष्य और कल्याण की कामना करते हुए आशीर्वाद दिए।

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आसन मघासु मुनय: शासति युधिष्ठिरे नृपते l
सूर्यस्थाने महेशकृपया जाता माहेश्वरी समुत्पत्तिः ll
अर्थ- जब सप्तर्षि मघा नक्षत्र में थे, युधिष्ठिर राजा शासन करता था। सूर्य के स्थान पर अर्थात राजस्थान प्रान्त के लोहार्गल में (लोहार्गल- जहाँ सूर्य अपनी पत्नी छाया के साथ निवास करते है, वह स्थान जो की माहेश्वरीयों का वंशोत्पत्ति स्थान है), भगवान महेशजी की कृपा (वरदान) से। कृपया - कृपा से, माहेश्वरी उत्पत्ति हुई (यह दिन युधिष्टिर संवत 9 जेष्ट शुक्ल नवमी का दिन था। तभी से माहेश्वरी समाज 'जेष्ट शुक्ल नवमी' को “महेश नवमी’’ के नाम से, माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन (माहेश्वरी समाज के स्थापना दिन) के रूप में बहुत धूम धाम से मनाता है। “महेश नवमी” माहेश्वरी समाज का सबसे बड़ा त्योंहार है, सबसे बड़ा पर्व है)।

(योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी द्वारा लिखित पुस्तक "माहेश्वरी - उत्पत्ति एवं संक्षिप्त इतिहास" से साभार...)


"माहेश्वरी - उत्पत्ति एवं संक्षिप्त इतिहास" पुस्तक के कुछ मुख्य अंशों को पढ़ने के लिए इस Link पर click / touch कीजिये > The Book, Maheshwari - Origin And Brief History | Author - Yogi Premsukhanand Maheshwari | माहेश्वरी - उत्पत्ति और संक्षिप्त इतिहास, योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी द्वारा लिखित पुस्तक

Om Birla and Subhash Chandra Baheria won in loksabha election 2019 | Matter of Pride for Maheshwari Community | General Election 2019

2019 के आम चुनाव में जीतकर फिर एकबार संसद में पहुंचे 2 माहेश्वरी- ओम बिर्ला और सुभाष चन्द्र बहेरिया (सुभाष बहेड़िया)


There is a wave of happiness in Maheshwari community after the pride of Maheshwari community, Om Birla (Kota-Bundi, Rajasthan) and Subhash Chandra Baheria (Bhilwara, Rajasthan), reached the Parliament after winning the 2019 general election.

Subhash Chandra Baheria, who won the election from Bhilwara, which is known as the stronghold of Maheshwari community in Rajasthan, has created history by becoming the fourth MP in the country to win with the highest number of votes. Only four (4) MPs in the entire country have won by a margin of more than 600,000 votes. Among these, Subhash Chandra Bahedia ji of Maheshwari Samaj has created a history by winning from Bhilwara by a margin of 612,000 votes which will be written in golden letters in the history of India, BJP and Maheshwari Samaj.

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माहेश्वरी समाचार : माहेश्वरी समाज के गौरव सुभाषजी बहेड़िया (भीलवाड़ा, राजस्थान) और ओमजी बिर्ला (कोटा-बूंदी, राजस्थान), 2019 के आम चुनाव में जीतकर फिर एकबार संसद में पहुंचने पर माहेश्वरी समाज में ख़ुशी की लहर है।

राजस्थान में माहेश्वरी समाज का गढ़ कहे जानेवाले भीलवाड़ा से चुनाव जीतनेवाले सुभाषजी बहेड़िया ने देश में सबसे ज्यादा वोटों से जीतनेवाले चौथे नंबर के सांसद बनकर इतिहास रचा है। पुरे देश में सिर्फ चार (4) ही सांसद 600,000 से ज्यादा मतों के अंतर से विजयी हुए है। इनमें माहेश्वरी समाज के सुभाषजी बहेड़िया ने भीलवाड़ा से 612,000 मतों के अंतर से जित दर्ज करके एक ऐसा इतिहास बना दिया है जो भारत, भाजपा और माहेश्वरी समाज के इतिहास में सुवर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा।

माहेश्वरी समाज के सुभाषजी बहेड़िया और ओमजी बिर्ला के विजयी होने पर माहेश्वरी समाजजनों ने अपनी ख़ुशी का इजहार करते हुए सोशल मिडिया के माध्यम से उनका बढ़-चढ़कर अभिनन्दन किया है, उन्हें शुभकामनाएं दी है। माहेश्वरी अखाड़े के पीठाधिपति प्रेमसुखानंदजी माहेश्वरी, माहेश्वरी महासभा के सभापति श्यामसुंदरजी सोनी, महामंत्री संदीपजी काबरा, अ भा माहेश्वरी युवा संगठन के राजकुमारजी काल्या, ज्येष्ठ साहित्यिक व पत्रकार शरदजी बागड़ी, इंटरनेशनल माहेश्वरी कपल क्लब के अशोकजी सोडानी, भाजपा के राष्ट्रिय उपाध्यक्ष श्यामजी जाजू, माहेश्वरी एकता टीवी के संचालक राजेशजी गिलड़ा आदि अनेको मान्यवरों ने सुभाषजी बहेड़िया और ओमजी बिर्ला का अभिनन्दन करते हुए उन्हें शुभकामनाएं दी है।

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Mahesh Navami 2019: Date and Significance | Mahesh Navami means Origin Day of Maheshwari Community, Maheshwari Vanshotpatti Diwas

Mahesh Navami means origin day of Maheshwari community is the biggest festival of the Maheshwari community. According to the Indian calendar, every year, the Navami of the Shukla Paksha of the month of Jyeshtha is celebrated with the celebration of "Mahesh Navami". This festival is mainly dedicated to the worship of Lord Mahesha (God of Gods Mahadev) and the Goddess Parvati (Goddess Maheshwari). The date of Mahesh Navami in the year 2019 is - Miti Jyeshtha Shukla 9, Tuesday, Yudhishthir Samvat 5161, accordingly English date is 11 June 2019.

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महेश नवमी 2019: उत्सव की तारीख और महत्व -


महेश नवमी अर्थात "माहेश्वरी समाज का उत्पत्ति दिवस", माहेश्वरी समाज का सबसे बड़ा त्यौहार है। भारतीय पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को "महेश नवमी" का उत्सव मनाया जाता है। यह त्यौहार मुख्य रूप से भगवान महेश (देवों के देव महादेव) और देवी पार्वती (देवी माहेश्वरी) की पूजा आराधना के लिए समर्पित है। वर्ष 2019 में महेश नवमी की तिथि है- मिति ज्येष्ठ शुक्ल 9, मंगलवार, युधिष्ठिर सम्वत 5161, तदनुसार अंग्रेजी तारीख 11 जून 2019.

मान्यता है कि, भगवान महेश और आदिशक्ति माता पार्वति ने ऋषियों के शाप के कारन पत्थरवत् बने हुए 72 क्षत्रिय उमराओं को युधिष्ठिर संवत 9 ज्येष्ठ शुक्ल नवमी के दिन शापमुक्त किया और नया जीवन देते हुए कहा की, "आज से तुम्हारे वंशपर हमारी छाप रहेगी, तुम “माहेश्वरी’’ कहलाओगे". भगवान महेशजी के आशीर्वाद से नया जीवन और "माहेश्वरी" नाम प्राप्त होने के कारन तभी से माहेश्वरी समाज ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को "महेश नवमी" के नाम से 'माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिवस (माहेश्वरी समाज स्थापना दिवस)' के रूप में मनाता है. भगवान महेश और देवी महेश्वरी (माता पार्वती) की कृपा से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई इसलिए भगवान महेश और देवी महेश्वरी को माहेश्वरी समाज के संस्थापक मानकर माहेश्वरी समाज में यह दिन 'महेश नवमी' के नामसे बहुत ही भव्य रूप में और बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है. महेश नवमी का पर्व मुख्य रूप से भगवान महेश (महादेव) और माता पार्वती की आराधना को समर्पित है, उनके द्वारा बताये गए जीवनमार्ग एवं सिद्धांतों पर जीवन जीने के संकल्प के प्रति समर्पित है.

ईसापूर्व 3133 में माहेश्वरी समाज की स्थापना के साथ ही माहेश्वरी समाज को मार्गदर्शित करने के लिए भगवान महेशजी ने माहेश्वरी समाज को "गुरु" प्रदान किये, समाजगुरु बनाये. इन गुरुओं ने माहेश्वरी समाज के लिए कुछ व्यवस्थाएं और कुछ नियम भी बनाए थे. हरएक माहेश्वरी का कर्तव्य है, अनिवार्य दायित्व है कि वो गुरु के बनाए व्यवस्था व नियमों का पालन करे, महेश नवमी का दिन है इस बात के दृढ़संकल्प को दोहराने का ! महेश नवमी का दिन है माहेश्वरी समाज द्वारा अपने समाज के पालक-संरक्षक भगवान महेशजी के प्रति विशेष आभार प्रकट करने का ! भगवान महेशजी, आदिशक्ति माता पार्वती और गुरुओं द्वारा दिखाए-बताये मार्ग पर चलते रहने के प्रति प्रतिबद्धता प्रकट करने का ! अपने आचार-विचार से सम्पूर्ण विश्व के मानव जाती के सामने एक सही जीवनपद्धति सादर करने के जिस महान उद्देश्य से भगवान महेशजी ने माहेश्वरी वंश का, माहेश्वरी समाज का निर्माण किया उस उद्देश्य की पूर्ति में लगे रहने का, समर्पित रहने का !

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माहेश्वरी समाज में युधिष्ठिर सम्वत का है प्रचलन


आज ई.स. 2019 में युधिष्ठिर संवत 5161 चल रहा है. माहेश्वरी वंशोत्पत्ति युधिष्ठिर संवत 9 में हुई है तो इसके हिसाब से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति आज से 5152 वर्ष पूर्व हुई है. "महेश नवमी उत्सव 2019" को माहेश्वरी समाज अपना 5152 वा वंशोत्पत्ति दिवस (समाज स्थापना दिवस) मना रहा है.

समयगणना के मापदंड (कैलेंडर वर्ष) को 'संवत' कहा जाता है. किसी भी राष्ट्र या संस्कृति द्वारा अपनी प्राचीनता एवं विशिष्ठता को स्पष्ट करने के लिए किसी एक विशिष्ठ कालगणना वर्ष/संवत (कैलेंडर) का प्रयोग (use) किया जाता है. आज के आधुनिक समय में सम्पूर्ण विश्व में ईसाइयत का ग्रेगोरीयन कैलेंडर प्रचलित है. इस ग्रेगोरीयन कैलेंडर का वर्ष 1 जनवरी से शुरू होता है. भारत में कालगणना के लिए युधिष्ठिर संवत, युगाब्द संवत्सर, विक्रम संवत्सर, शक संवत (शालिवाहन संवत) आदि भारतीय कैलेंडर का प्रयोग प्रचलन में है. भारतीय त्योंहारों की तिथियां इन्ही भारतीय कैलेंडर से बताई जाती है, नामकरण संस्कार, विवाह आदि के कार्यक्रम पत्रिका अथवा निमंत्रण पत्रिका में भारतीय कैलेंडर के अनुसार तिथि और संवत (कार्यक्रम का दिन और वर्ष) बताने की परंपरा है.

माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति जब हुई तब कालगणना के लिए युधिष्ठिर संवत प्रचलन में था. मान्यता के अनुसार माहेश्वरी वंशोत्पत्ति युधिष्ठिर संवत 9 में ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष के नवमी को हुई है. इसीलिए पुरातन समय में माहेश्वरी समाज में कालगणना के लिए 'युधिष्ठिर संवत' का प्रयोग (use) किया जाता रहा है. वर्तमान समय में देखा जा रहा है की माहेश्वरी समाज में युधिष्ठिर संवत के बजाय विक्रम सम्वत या शक सम्वत का प्रयोग किया जा रहा है. विक्रम या शक सम्वत के प्रयोग में हर्ज नहीं है लेकिन इससे माहेश्वरी समाज की विशिष्ठता और प्राचीनता दृष्टिगत नहीं होती है. जैसे की यदि युधिष्ठिर संवत का प्रयोग किया जाता है तो, वर्तमान समय में चल रहे युधिष्ठिर संवत (वर्ष) में से 9 वर्ष को कम कर दे तो माहेश्वरी वंशोत्पत्ति वर्ष मिल जाता है.

माहेश्वरी संस्कृति की असली पहचान युधिष्ठिर संवत से होती है. माहेश्वरी समाज की सांस्कृतिक पहचान है युधिष्ठिर संवत. इसलिए माहेश्वरी समाज के सांस्कृतिक पर्व-उत्सव, नामकरण, विवाह, गृहप्रवेश, सामाजिक व्यापारिक-व्यावसायिक कार्यों  के अनुष्ठान, इन सबका दिन बताने के लिए युधिष्ठिर संवत का उल्लेख किया जाना चाहिए; विक्रम संवत, शक संवत या अन्य किसी संवत का नहीं (जैसे की- महेश नवमी उत्सव 2019 मित्ति ज्येष्ठ शु. ९, 
मंगलवार, युधिष्ठिर संवत ५१६१, दि. 11 जून 2019).


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Mahesh Navami Significance -


According to traditional belief, the lineage of the Maheshwari origin was done on Jyeshtha Shukla Navami of Yudhishtir Samvat 9, Since then, Maheshwari community has celebrated Jyeshtha Shukla Navami every year with the name of "Mahesh Navami" as the day of origin of the community. Religious and cultural events are performed on this day. This festival reveals complete devotion and faith to Lord Mahesha and Goddess Parvati. It is the most important day in all this community people where several cultural events and rallys are arranged together to make unity and dignity amongst all. The main purpose is to demonstrate the commitment of walking on the path shown by Lord Mahesha, Adishakti Mata Parvati and the Gurus.


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स्थान, समय, स्वागतोत्सुक के सामने छोड़ी गई खाली जगहों को भरकर...
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