What is Maheshwari Akhada? Know About Maheshwari Akhada | जानिए माहेश्वरी अखाड़े के बारेमें, क्या है माहेश्वरी अखाड़ा? | Maheshwari Akhara

Maheshwari Akhada is the supreme Gurupeeth of Maheshwari Community, the highest religious-spiritual management body of Maheshwari Samaj. Actually, the tradition of Maheshwari Gurupeeth is more than 5000 years old. When Lord Mahesha (Lord Shiva) founded Maheshwari Samaj on the day of Jyeshtha Shukla Navami in 3133 BC, since then the Maheshwari community celebrates this day as the foundation day of Maheshwari Samaj and in the name of Mahesh Navami. Then, along with the establishment of Maheshwari community, Lord Mahesh ji had entrusted the responsibility of guiding the Maheshwari community to 6 Gurus (Rishis); Maheshwari Gurupeeth tradition was started by these 6 Gurus, But in the time cycle this Maheshwari Gurupeeth tradition got disintegrated. In the year 2008, this highest Gurupeeth of Maheshwari community was legally and officially re-established with the name of Divyshakti Yogpeeth Akhara. At the time of official establishment its name was recorded as "Divyshakti Yogpeeth Akhara", but it is popularly known as "Maheshwari Akhada".

The president of Maheshwari Akhara (Divyashakti Yogpeeth Akhara) is decorated with the title of Maheshacharya. The post of Maheshacharya is equivalent to Shankaracharya and Pope. Only the President (Peethadhipati) of the highest Gurupeeth of Maheshwari Samaj “Divyashakti Yogpeeth Akhara” is entitled/officially authorized to be decorated with the title of “Maheshacharya”. The first Peethadhipati of Maheshwari Gurupeeth was Maharishi Parashar, hence Maharishi Parashara is the Adi Maheshacharya. Presently Yogi Premsukhanand Maheshwari is the Peethadhipati of Divyashakti Yogpeeth Akhara (Maheshwari Akhada) and Maheshacharya.

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According to the constitution of Maheshwari Akhada, the main function of this Akhada is to protect religion and Maheshwari culture. The main objective of Maheshwari Akhada is to organize, enrich and strengthen Maheshwari community. The main objective of the Akhara is to maintain the culture and cultural identity of the Maheshwari community and to increase unity in the society through well-organized management so that there is all-round development of the society.


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जानिए माहेश्वरी अखाड़े के बारेमें, क्या है माहेश्वरी अखाड़ा?

माहेश्वरी अखाड़ा (जिसका आधिकारिक नाम दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा है) माहेश्वरी समुदाय का सर्वोच्च धार्मिक गुरुपीठ है, माहेश्वरी समाज की शीर्ष/सर्वोच्च धार्मिक-आध्यात्मिक प्रबंधन संस्था है। वैसे तो माहेश्वरी गुरुपीठ की परंपरा 5000 वर्ष से भी ज्यादा पुरातन है। जब इसा पूर्व 3133 में, ज्येष्ठ शुक्ल नवमी के दिन भगवान महेश जी ने माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति/उत्पत्ति की थी, इसी दिन को माहेश्वरी समुदाय माहेश्वरी समाज के स्थापना दिवस के रूपमें तथा महेश नवमी के नाम से मनाता है। तब माहेश्वरी समुदाय के स्थापना के साथ साथ ही भगवान महेश जी ने माहेश्वरी समाज को मार्गदर्शित करने का दायित्व 6 गुरुओं (ऋषियों) को सौपा था; इन्ही 6 गुरुओं द्वारा माहेश्वरी गुरुपीठ परंपरा की शुरुआत की गई थी लेकिन समय चक्र में यह माहेश्वरी गुरुपीठ परंपरा विघटित हो गई। वर्ष 2008 में माहेश्वरी समाज के इस सर्वोच्च गुरुपीठ को कानूनी एवं आधिकारिक तौर पर "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" के नाम से पुनः स्थापित किया गया। आधिकारिक स्थापना के समय इसका नाम "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" दर्ज किया गया था, लेकिन यह "माहेश्वरी अखाड़ा" के नाम से प्रसिद्ध है, लोकप्रिय है।

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For more information about Maheshacharya (महेशाचार्य), click on this link > The Maheshacharya (महेशाचार्य), Peethadhipati – Maheshwari Akhada (Maheshwari Gurupeeth)

माहेश्वरी अखाड़ा (दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा) के पीठाधिपति "महेशाचार्य" की उपाधि से अलंकृत होते है। महेशाचार्य पद शंकराचार्य और पोप के समकक्ष है। केवल माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च गुरुपीठ "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" के अध्यक्ष (पीठाधिपति) ही "महेशाचार्य" की उपाधि से अलंकृत होने के अधिकारी है / आधिकारिक रूप से अधिकृत है। माहेश्वरी गुरुपीठ के प्रथम पीठाधिपति महर्षि पराशर थे इसलिए महर्षि पराशर "आदि महेशाचार्य" है। वर्तमान में योगी प्रेमसुखानंद माहेश्वरी "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा (माहेश्वरी अखाड़ा)" के पीठाधिपति और महेशाचार्य हैं।

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माहेश्वरी अखाड़े के विधान के अनुसार इस अखाड़े का मुख्य कार्य धर्म की, माहेश्वरी संस्कृति की रक्षा करना है। माहेश्वरी अखाड़े का मुख्य उद्देश्य माहेश्वरी समाज को संगठित करना, समृद्ध करना, सुदृढ़ करना है। समाज की संस्कृति, सांस्कृतिक पहचान बनाये रखना एवं सुव्यवस्थित प्रबंधन के माध्यम से समाज में एकता को बढ़ाना जिससे की समाज का सर्वांगीण विकास हो यह अखाड़े का प्रमुख उद्देश्य है। आवश्यक होने पर सांस्कृतिक, सामाजिक इत्यादि से सम्बन्धित कार्य भी अखाड़े के माध्यम से किये जाने का प्रावधान है। माहेश्वरी समाज, धर्म और राष्ट्र का गौरव बढ़ाने तथा इनके सर्वांगीण प्रगति और संरक्षण-संवर्धन के लिए कार्य करना माहेश्वरी अखाड़े का मुख्य उद्देश्य है।

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ज्यादातर माहेश्वरीयोंने कुम्भमेला और उसके सन्दर्भ में अखाड़ा शब्द सुना हुवा है लेकिन 'माहेश्वरी अखाड़ा' के बारे में ना सुना है न उन्हें इसकी जानकारी है तो फिर अचानक ये माहेश्वरी अखाड़ा कहाँ से उत्पन्न हो गया यह प्रश्न मन में आना स्वाभाविक है इसे समझने के लिए हमें पहले कुछ बातों को जानना आवश्यक है ज्यादातर माहेश्वरी लोगों को माहेश्वरी वंशोत्पत्ति कैसे हुई? किसने की? कब हुई? कहाँ हुई? क्यों हुई? इसके बारे में ही जानकारी नहीं है, उस समय और उसके बाद क्या क्या हुवा इसकी भी जानकारी ज्यादातर माहेश्वरीयों को नहीं है इसलिए माहेश्वरी अखाड़े को जानने-समझने से पहले माहेश्वरी समाज की ऐतिहासिक पार्श्वभूमि को जानना होगा... इन उपरोक्त बातों को जानने के लिए पुस्तक "माहेश्वरी उत्पत्ति एवं संक्षिप्त इतिहास" जरूर पढ़े।


संक्षेप में कहें तो, माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के अनुसार माहेश्वरीयों/माहेश्वरी समाज को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन करनेका दायित्व भगवान महेशजी ने ऋषि पराशर, सारस्वत, ग्वाला, गौतम, श्रृंगी, दाधीच इन छः (6) ऋषियों को सौपा। कालांतर में इन गुरुओं ने महर्षि भारद्वाज को भी माहेश्वरी गुरु पद प्रदान किया जिससे माहेश्वरी गुरुओं की संख्या सात हो गई जिन्हे माहेश्वरीयों में सप्तर्षि कहा जाता है। इन सप्तगुरुओं ने माहेश्वरी समाज के प्रबंधन और मार्गदर्शन का कार्य सुचारू रूप से चले इसलिए एक 'गुरुपीठ' को स्थापन किया जिसे "माहेश्वरी गुरुपीठ" कहा जाता था। इस माहेश्वरी गुरुपीठ के इष्ट देव 'महेश परिवार' (भगवान महेश, पार्वती, गणेश आदि...) थे सप्तगुरुओं ने माहेश्वरी समाज के प्रतिक-चिन्ह 'मोड़' (जिसमें एक त्रिशूल और त्रिशूल के बीच के पाते में एक वृत्त तथा वृत्त के बीच ॐ (प्रणव) होता है) और ध्वज का सृजन किया (देखें Link > Maheshwari Religious Symbol – Mod) ध्वज को "दिव्य ध्वज" कहा गया दिव्य ध्वज (केसरिया रंग के ध्वजा पर अंकित मोड़ का निशान) माहेश्वरी समाज की ध्वजा बनी (देखें Link > Maheshwari Flag) गुरुपीठ के पीठाधिपति “महेशाचार्य” की उपाधि से अलंकृत थे, इसलिए उन्हें "महेशाचार्य" कहा जाता था (देखें Link > आदि महेशाचार्य)"महेशाचार्य" यह माहेश्वरी समाज का सर्वोच्च गुरु पद माना जाता है। इस माहेश्वरी गुरुपीठ के माध्यम से समाजगुरु माहेश्वरी समाज को मार्गदर्शित करते थे। माना जाता है की वंशोत्पत्ति के बाद कुछ शतकों तक यह गुरुपीठ परंपरा चलती रही, लेकिन समय के प्रवाह में माहेश्वरी गुरुपीठ की यह परंपरा खंडित हो गई (इसी कारन से लगभग पिछले चार हजार वर्षों से माहेश्वरी समाज के गुरुपीठ के बारे में ना किसी ने कुछ सुना ना ही किसी को इसकी जानकारी है)। यह माहेश्वरीयों का, माहेश्वरी समाज का दुर्भाग्य है की जाने-अनजाने में माहेश्वरी समाज अपने गुरुपीठ और गुरूओंको भूलते चले गए। परिणामतः समाज को उचित मार्गदर्शन करनेवाली व्यवस्था ही समाप्त हो गई जिससे समाज की बड़ी हानि हुई है और आज भी हो रही है। माहेश्वरी समाजजनों को समाजहित में इस बात को गंभीरता से समझते हुए सही और उचित दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए।


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"अखाड़ा" संस्कृत वर्ण माला का शब्द है, इसे व्यापक रूप से सनातन धर्म के 'प्रमुख मठ' के लिए प्रयोग किया जाता है, इसे 'पीठ' भी कहा जाता है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि सनातन धर्म की रक्षा के लिए अखाड़े हमेशा कवच बने रहे। सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति के संरक्षण में इनका बहुत बड़ा योगदान है। अखाड़े के पीठाधिपति प्रायः धर्म गुरु होते है और इनके द्वारा मुख्यतः आध्यात्मिक कार्य और आध्यात्मिक मार्गदर्शन किया जाता है पर ऐसा हमेशा नही होता। आवश्यक होने पर, इन कार्यो के अतिरिक्त सांस्कृतिक, सामाजिक, शैक्षणिक इत्यादि से सम्बन्धित कार्य भी अखाड़े के माध्यम से किये जाते हैं। अखाड़े सनातन धर्म के अनुयायियों को मार्गदर्शित और अनुशाषित करनेवाली एक व्यवस्था है जिससे की सनातन धर्म का संरक्षण-संवर्धन हो।

अखाड़ों का इतिहास आदि शंकराचार्य के सनातन धर्म को बचाने के प्रयासों से जुड़ा हुवा है। माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने भारत में, देश के चार कोनों में-
(1) उत्तर दिशा में बदरिकाश्रम में "ज्योतिर्पीठ" (स्थापना- युधिष्ठिर संवत् 2641-2645)
(2) पश्चिम में द्वारिका में "द्वारिका शारदा पीठ" (स्थापना- युधिष्ठिर संवत् 2648)
(3) दक्षिण में "शृंगेरी पीठ" (स्थापना- युधिष्ठिर संवत् 2648)
(4) पूर्व दिशा में जगन्नाथपुरी में "गोवर्द्धन पीठ" (स्थापना- युधिष्ठिर संवत् 2655)
इन चार पीठों की स्थापना की। इन चार पीठों के प्रमुखों को 'शंकराचार्य' कहा जाता है। इनका कार्य मात्र आध्यात्मिक मार्गदर्शन तक ही सिमित था। आदि शंकराचार्य ने इन चार पीठों की स्थापना कर सनातन धर्म का संरक्षण-संवर्धन करने की कोशिश की। लेकिन इसी दौरान उन्हें लगा कि जब समाज में धर्म की विरोधी शक्तियां सिर उठा रही हैं, तो सिर्फ आध्यात्मिक शक्ति के जरिए ही इन चुनौतियों का मुकाबला करना काफी नहीं है। इसलिए आदि शंकराचार्य ने जोर दिया कि युवा साधु कसरत करके शरीर को सुदृढ़ बनाएं और कुछ हथियार चलाने में भी कुशलता हासिल करें। इसके लिए ऐसे मठ स्थापित किए गए, जहां कसरत के साथ ही हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाने लगा। ऐसे ही मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा। उन्होंने ये भी सुझाव दिया कि मठ, मंदिरों, श्रद्धालुओं और धर्म की सुरक्षा के लिए जरूरत पड़ने पर शक्ति का इस्तेमाल किया जा सकता है। इस तरह अखाड़ों का जन्म हुआ।

वर्तमान समय में व्यायामशाला को भी अखाड़ा कहते हैं और साधु-संन्यासियों के आश्रम, मठ या रुकने के स्थान को भी अखाड़ा कहा जाता है। हालांकि आधुनिक व्यायामशाला (कुश्ती के अखाड़े) का निर्माण समर्थ रामदास स्वामी की देन है, लेकिन संतों के अखाड़ों का निर्माण पुरातन समय से ही चला आ रहा है। पुरातन समय में राष्ट्र और धर्म दोनो की रक्षा के लिए अखाड़े के साधू-संत अपने ज्ञान, साधना (अनुसन्धान), अपनी अस्त्र-शस्त्र विद्या का उपयोग भी किया करते थे। वर्तमान समय में अखाड़े के साधु संत सनातन धर्म के प्रचार प्रसार का कार्य करते हैं। अखाड़े के पीठाधिपति, आचार्य, साधु-संत और कथावाचक अखाड़े के माध्यम से योग शिक्षा (योग शिविर), कथा वाचन एवं प्रवचन आदि के द्वारा सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करते हैं। आज के समय में भी अखाड़े धर्म तथा राष्ट्र पर संकट आने पर ज्ञान और उचित मार्गदर्शन आदि से लोगों को सही राह पर लाने के लिए तत्पर रहते हैं।

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Maheshwari Heroes of Ayodhya Ram Mandir Andolan | Kothari Brothers | Ram Kothari and Sharad Kothari | Avinash Maheshwari | मंदिर वहीं बने इसलिए तीन (3) Maheshwari युवाओं ने दी थी अपने जान की आहुति | Maheshwari Samaj | Ayodhya News

राम का मंदिर वहीं बने इसलिए 3 माहेश्वरी युवाओं "अविनाश माहेश्वरी, राम कोठारी और शरद कोठारी" ने दी थी अपने जान की आहुति


In the Ayodhya Ram Janmabhoomi temple movement, the Maheshwaris also not only actively participated in the movement launched by Hindu samaj and Ram devotees but even sacrificed their lives. Avinash Maheshwari and Kothari brothers - Ram Kothari and Sharad Kothari sacrificed their lives on 2 November 1990 in the Ayodhya Ram Mandir Andolan to build Ram temple there. Gave his supreme sacrifice for the Lord Shri Rama and protection of Dharma. The sacrifices of these three Maheshwaris, Avinash Maheshwari and Kothari brothers Ram Kothari and Sharad Kothari can never be forgotten in the history of the Ram Mandir movement of Ayodhya. The entire Maheshwari community is proud of him. The Kothari brothers, Ram Kothari & Sharad Kothari have also been honored with Maheshwari Ratna Award, the highest honor of Maheshwari community, started by Maheshwari Akhada, the highest Gurupeeth of Maheshwari community and given by the Maheshacharya.

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अयोध्या राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन में हिन्दुओं, रामभक्तों ने जो आंदोलन चलाया उसमें माहेश्वरीयों ने भी ना सिर्फ बढ़चढ़कर हिस्सा लिया बल्कि अपने जान की आहुतियाँ तक दी। अविनाश माहेश्वरी और कोठारी बंधुओं शरद कोठारी और राम कोठारी ने राम का मंदिर वहीँ बने इसलिए अयोध्या राम मंदिर आंदोलन में 2 नवम्बर 1990 को दी थी अपने जान की आहुति। प्रभु श्री राम और धर्म रक्षा के लिए दे दिया अपना सर्वोच्च बलिदान। राम मंदिर आंदोलन के इतिहास में इन तीनों माहेश्वरीयों, अविनाश माहेश्वरी और कोठारी बंधुओं के बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। समस्त माहेश्वरी समाज को इनपर गर्व है। कोठारी बंधुओं, राम कोठारी और शरद कोठारी को "माहेश्वरी रत्न पुरस्कार" से भी सम्मानित किया गया है, जो माहेश्वरी समाज का सर्वोच्च सम्मान है, जो माहेश्वरी समाज की सर्वोच्च गुरुपीठ माहेश्वरी अखाड़ा द्वारा शुरू किया गया है और महेशाचार्य द्वारा दिया जाता है।


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सन 1990 के अयोध्या राम मंदिर आंदोलन को लेकर अयोध्या चलो के आवाहन पर जहाँ लाखों रामभक्त अयोध्या पहुंचे थे वही किसी बड़े हंगामें की आशंका को लेकर बड़ी संख्या में पत्रकार भी अयोध्या पहुंचे थे। रामभक्त कारसेवकों पर गोलियां चलाने की घटना के समय अयोध्या के पत्रकार महेंद्र त्रिपाठी भी मौके पर मौजूद थे, वे इसके प्रत्यक्षदर्शी थे और उन्होंने तमाम ऐसे फोटो लिए थे जो देश के ही नहीं विदेशों के मिडिया के अखबारों की भी सुर्खियां बने। इस गोलीकांड के प्रत्यक्षदर्शी इन्ही पत्रकार महेंद्र त्रिपाठी के मुताबिक, 2 नवम्बर 1990 की सुबह अयोध्या के हनुमान गढ़ी मंदिर के सामने लाल कोठी के संकरी गली में भरे कारसेवकों पर तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर पुलिस ने गोलियां चला दी जिसमें कारसेवा करने आये इन कारसेवकों का नेतृत्व कर रहे कलकत्ता के राम कोठारी को गोली मार दी गई। पुलिस से भाई का शव उठाने की अनुमति लेकर शरद कोठारी ने जैसे ही "जय श्रीराम" का नारा लगाकर अपने भाई राम कोठारी का शव उठाया तो उसे भी पुलिसवालों ने गोली मार दी और मौके पर ही दोनों कोठारी भाइयों की मौत हो गई। कोठारी बंधुओं को मारने के बाद वहां उपस्थित साधु संतो और कारसेवकों पर भी पुलिस ने गोलियां चला दी जिसमें अनेको साधु संत और कारसेवक मारे गए। फिर अयोध्या के अलग अलग स्थानों पर जमा साधु संत और कारसेवकों पर भी पुलिस ने गोलियां चलाई थी।

आगे के घटनाक्रम में फिर गीता जयंती के शुभ दिन (6 दिसम्बर, 1992) को पुनः कारसेवा की तिथि निश्चित की गयी जिसमें आक्रोशित हो उठे कारसेवकों ने वहाँ के तीनों गुम्बद गिरा दिये और इसके बाद वहाँ विधिवत श्री रामलला को भी विराजित कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद का जो केस चल रहा है उसमें यही "रामलला विराजमान" भी एक पक्षकार है। (कहा जाता है की ध्वस्त ढांचे की दीवारों से 5 फुट लंबी और 2.25  फुट चौड़ी एक पत्थर की एक शिला मिली। विशेषज्ञों ने बताया कि इस पत्थर की शिला पर बारहवीं सदी में संस्कृत में लिखीं 20 पंक्तियां उत्कीर्ण थीं जिसमें पहली पंक्ति की शुरुआत “ओम नम: शिवाय” से होती है। 15वीं, 17वीं और 19वीं पंक्तियां स्पष्ट तौर पर बताती हैं कि यह मंदिर “दशानन (रावण) के संहारक विष्णु हरि” को समर्पित है। मलबे से करीब ढाई सौ हिन्दू कलाकृतियां भी पाई गईं जो फिलहाल न्यायालय के नियंत्रण में हैं)।

6 दिसम्बर 1992 को भगवान श्रीराम के जन्मभूमि पर रामलला के विराजित होने से राम जन्मभूमि पर राम मंदिर के लिए बलिदान देनेवाले कारसेवकों का शौर्य सफल हुवा। इसलिए प्रतिवर्ष 6 दिसम्बर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उसके बजरंग दल आदि समवैचार‍िक संगठन शौर्य द‍िवस के रूप में मनाते है, सेल‍िब्रेट करते है। शौर्य दिवस के कार्यक्रम में मुख्य रूपसे सन 1990 के अयोध्या राम मंदिर आंदोलन में बलिदान देनेवाले प्रथम बलिदानी कोठारी बंधुओं की तस्वीर को रखकर प्रतीकात्मक रूपसे राम मंदिर के लिए अपनी जान का बलिदान देनेवाले तमाम बलिदानी कारसेवकों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।

2 नवम्बर 1990 को अयोध्या राम जन्मभूमि आंदोलन में शहीद हुए रामभक्त कारसेवकों की याद में, उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए दिगंबर अखाड़ा प्रतिवर्ष के 2 नवम्बर को कोठारी बंधुओं की तस्वीरों के साथ "शहीद दिवस" के रूपमें मनाता है।

माहेश्वरी समाज की सर्वोच्च धार्मिक-आध्यात्मिक-सामाजिक प्रबंधन संस्था "माहेश्वरी अखाड़ा (दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा) ने रामभक्त अमर बलिदानी कोठारी बंधुओं को माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च सम्मान "माहेश्वरी रत्न" से नवाजा है। 2 नवम्बर 1990 को अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर बनाने के लिए हुए आंदोलन में अपनी जान का बलिदान देनेवाले कोठारी बंधुओं को, उनके बलिदान को हिन्दू समाज, तमाम रामभक्त और माहेश्वरी लोग कभी नहीं भूल सकते।

 प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी द्वारा लिखित पुस्तक 'माहेश्वरी  उत्पत्ति एवं संक्षिप्त इतिहास' से साभार



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Shyam Jaju Awarded Divy Bhushan Award–2018 | Politician श्याम जाजू को दिव्य भूषण पुरस्कार – 2018 | Maheshwari Awards | Divy Awards | These award is given on Mahesh Navami by Maheshacharya


श्याम जाजू माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च पुरस्कारों में से एक 'दिव्य भूषण' सम्मान से सम्मानित


Politician Shyam Jaju has been honored with Divy Bhushan Award, one of the highest awards of Maheshwari Samaj. This honor is given for the distinguished and notable service done by a Maheshwari person in any field. These Maheshwari Awards have been started by Maheshwari Akhada (whose official name is 'Divyashakti Yogpeeth Akhara'), the highest Gurupeeth of Maheshwari community. This award is given to the recipient by the Peethadhipati of Maheshwari Akhada, who is decorated with the title of Maheshacharya, the highest guru post of Maheshwari community (At the present time Yogi Premsukhanand Maheshwari is the Peethadhipati of Maheshwari Akhada and Maheshacharya). These awards are given on Mahesh Navami.

Only maximum 8 Maheshwari persons can be given the Divy Bhushan Award in one year, it is an international level award. A medal and a citation (honor card) are given in this award. The Divy Bhushan is the third highest Maheshwari award in the Maheshwari community, preceded by the Maheshwari Ratna and the Divy Vibhushan and followed by the Divy Shri Award.


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माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च पुरस्कारों में से 'दिव्य भूषण' सम्मान से श्याम जाजू को सम्मानित किया गया है। श्याम जाजू जानेमाने राजनीतिज्ञ, कुशल संगठक और उत्कृष्ट वक्ता है। उन्हें यह पुरस्कार "दिव्य अवार्ड्स 2018" के अंतर्गत दिया गया है। यह सम्मान किसी भी क्षेत्र में माहेश्वरी व्यक्ति द्वारा की गई विशिष्ट और उल्लेखनीय सेवा के लिए माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च गुरुपीठ, माहेश्वरी अखाड़ा (जिसका आधिकारिक नाम 'दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा' है) के द्वारा शुरू किये गए है। यह पुरस्कार "प्राप्तकर्ता" को माहेश्वरी अखाड़े के पीठाधिपति द्वारा दिया जाता है, जो माहेश्वरी समुदाय के सर्वोच्च गुरु पद "महेशाचार्य" की उपाधि से अलंकृत होते हैं (वर्तमान समय में योगी प्रेमसुखानंद माहेश्वरी माहेश्वरी अखाड़े के पीठाधिपति और महेशाचार्य हैं)। ये पुरस्कार महेश नवमी पर प्रदान किये जाते हैं।

एक वर्ष में अधिकतम 8 माहेश्वरी व्यक्तियों को ही दिव्य भूषण पुरस्कार दिया जा सकता है, यह एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार है। इस पुरस्कार में एक पदक और एक प्रशस्ति पत्र (सम्मान पत्र) दिया जाता है। दिव्य भूषण माहेश्वरी समाज में तीसरा सबसे बड़ा माहेश्वरी पुरस्कार है, इससे पहले माहेश्वरी रत्न और दिव्य विभूषण और इसके बाद दिव्य श्री पुरस्कार दिया जाता है।

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दिव्य पुरस्कार माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च पुरस्कारों में से हैं। दिव्य पुरस्कार 3 श्रेणियों में प्रदान किए जाते हैं- दिव्यश्री, दिव्य भूषण, दिव्य विभूषण। माहेश्वरी अखाड़ा द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिए जानेवाले माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च सम्मान 'माहेश्वरी रत्न’ के बाद क्रमशः चौथे, तीसरे और दूसरे स्थान पर दिव्यश्री, दिव्य भूषण और दिव्य विभूषण यह श्रेष्ठ पुरस्कार है। इस सम्मान में एक पदक और प्रशस्ति पत्र (सम्मान पत्र) दिया जाता है। यह पुरस्कार महेशाचार्य द्वारा प्रदान किया जाता है जो की माहेश्वरी समाज के शीर्ष धार्मिक-आध्यात्मिक प्रबंधन संस्था "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" के पीठाधिपति होते है।

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Smriti Mandhana Awarded Divy Bhushan Award | Cricketer स्मृति मानधना (स्मृति मंधाना) को दिव्य भूषण पुरस्कार–2018 | This award is given on Mahesh Navami by Maheshacharya | Maheshwari Awards

स्मृति मानधना (स्मृति मंधाना) माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च पुरस्कारों में से एक 'दिव्य भूषण' सम्मान से सम्मानित


Indian cricketer Smriti Mandhana has been honored with Divy Bhushan Award, one of the highest awards of Maheshwari Samaj. This honor is given for the distinguished and notable service done by a Maheshwari person in any field. These Maheshwari Awards have been started by Maheshwari Akhada (whose official name is 'Divyashakti Yogpeeth Akhara'), the highest Gurupeeth of Maheshwari community. This award is given to the recipient by the Peethadhipati of Maheshwari Akhada, who is decorated with the title of Maheshacharya, the highest guru post of Maheshwari community (At the present time Yogi Premsukhanand Maheshwari is the Peethadhipati of Maheshwari Akhada and Maheshacharya). These awards are given on Mahesh Navami.

Only maximum 8 Maheshwari persons can be given the Divy Bhushan Award in one year, it is an international level award. A medal and a citation (honor card) are given in this award. The Divy Bhushan is the third highest Maheshwari award in the Maheshwari community, preceded by the Maheshwari Ratna and the Divy Vibhushan and followed by the Divy Shri Award.

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भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी स्मृति मानधना (स्मृति मंधाना) को माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च पुरस्कारों में से 'दिव्य भूषण' सम्मान से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान किसी भी क्षेत्र में माहेश्वरी व्यक्ति द्वारा की गई विशिष्ट और उल्लेखनीय सेवा के लिए माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च गुरुपीठ, माहेश्वरी अखाड़ा (जिसका आधिकारिक नाम 'दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा' है) के द्वारा शुरू किये गए है। यह पुरस्कार "प्राप्तकर्ता" को माहेश्वरी अखाड़े के पीठाधिपति द्वारा दिया जाता है, जो माहेश्वरी समुदाय के सर्वोच्च गुरु पद "महेशाचार्य" की उपाधि से अलंकृत होते हैं (वर्तमान समय में योगी प्रेमसुखानंद माहेश्वरी माहेश्वरी अखाड़े के पीठाधिपति और महेशाचार्य हैं)। ये पुरस्कार महेश नवमी पर प्रदान किये जाते हैं।

एक वर्ष में अधिकतम 8 माहेश्वरी व्यक्तियों को ही दिव्य भूषण पुरस्कार दिया जा सकता है, यह एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार है। इस पुरस्कार में एक पदक और एक प्रशस्ति पत्र (सम्मान पत्र) दिया जाता है। दिव्य भूषण माहेश्वरी समाज में तीसरा सबसे बड़ा माहेश्वरी पुरस्कार है, इससे पहले माहेश्वरी रत्न और दिव्य विभूषण और इसके बाद दिव्य श्री पुरस्कार दिया जाता है।




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स्मृति मानधना (स्मृति मंधाना) 

स्मृति मानधना एक विख्यात भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी है, जों भारतीय महिला क्रिकेट टीम के लिए खेलती है। खेलों में क्रिकेट को ज्यादातर राष्ट्रों में बहुत पसंद किया जाता है। पहले पुरुषों द्वारा क्रिकेट खेले जाने का बहुत महत्व था लेकिन जैसा की हम सब अब जानते ही हैं की महिलाये भी अब किसी क्षेत्र में किसी से पीछे नहीं हैं तो क्रिकेट में कैसे पीछे रह सकती हैं। उन महिला क्रिकेट खिलाडियों में से स्मृति मानधना एक ऐसी खिलाडी हैं जिन्होंने अपने अच्छे प्रदर्शन से न केवल महिलाओं का, पुरे राष्ट्र का, बल्कि समस्त माहेश्वरी समाज का नाम पुरे विश्व में ऊंचा कर दिया है। बाएं हाथ से खेलने वाली बल्लेबाज खिलाडी स्मृति मानधना ने अपने अच्छे प्रदर्शन से न केवल भारत में बल्कि पुरे विश्व में अपने माहेश्वरी समाज का नाम रोशन किया है।

Smriti Mandhana Born, Education and Family (स्मृति मानधना जन्म, शिक्षा और परिवार)

स्मृति का जन्म 18 जुलाई 1996 को मुंबई महाराष्ट्र में हुआ। इनके पिता श्रीनिवास मानधना (फॉर्मर डिस्ट्रिक्ट-लेवरल क्रिकेटर) और माता स्मिता मानधना हैं। इनका एक भाई भी है जिसका नाम श्रवण मानधना (फॉर्मर डिस्ट्रिक्ट-लेवरल क्रिकेटर) है। जब ये मात्र दो वर्ष की थी तब इनके माता पिता माधवनगर, सांगली (महाराष्ट्र) में हमेशा के लिए आ कर बस गए जिसके बाद इनकी पूरी शिक्षा और परवरिश माधवनगर, सांगली में ही हुई। इनका पूरा परिवार क्रिकेट से जुड़ा हुआ और एक क्रिकेट प्रेमी परिवार है। स्मृति का क्रिकेट में आने का मन तब हुआ जब इन्होने अपने भाई को अंडर 16 के लिए राज्य स्तर पर क्रिकेट खेलते हुए देखा। स्मृति मात्र 11 वर्ष की आयु में अंडर 19 के लिए क्रिकेट में शामिल कर ली गयी थीं। क्योंकि स्मृति का परिवार पहले से ही क्रिकेट क्षेत्र की अच्छी जानकारी रखता था इसलिए इनकी माता और भाई इनके खाने पीने (पौष्टिक भोजन) का, एक्सरसाइज का, स्वास्थ्य (फिटनेस) का पूरा ध्यान रखते थे ताकि स्मृति पूरी तरह स्वस्थ रहे और क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन कर पाएं।

Smriti Mandhana Domestic career (डोमेस्टिक करियर)

स्मृति ने अपने करियर में सबसे पहली सफलता डोमेस्टिक स्तर पे पाई जब उन्होंने अक्टूबर 2013 में वडोदरा में अल्मबिक क्रिकेट ग्राउंड पर वेस्ट जोन अंडर 19 टूर्नामेंट में गुजरात के खिलाफ महाराष्ट्र के लिए खेलते हुए 150 गेंदों पर 224 रन बना के नाबाद रहीं। इतना ही नहीं ये वो पहली महिला क्रिकेटर हैं जिन्होंने वनडे में दोहरा शतक लगाया। इसके बाद 2016 में वुमन चैलेंजर ट्रॉफी में इन्होने भारत रेड की और से खेलते हुए 3 अर्धशतक लगातार लगाये। इन्ही में 62 रन की एक ऐसी पारी भी शामिल हैं जिससे इन्होने फाइनल में लगाकर टीम को जीत दिलाई थी।

Smriti Mandhana International career (अंतर्राष्ट्रीय करियर)

स्मृति अपने अच्छे प्रदर्शन से क्रिकेट में अपनी जगह बना चुकी हैं जिसके कारण इन्हे तीनो फार्म में भारत का प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्राप्त हुआ। इन्होने अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय खेल बांग्लादेश के खिलाफ 10 अप्रैल 2013 वनडे में खेला था। इसके बाद इन्होने अपने टेस्ट मैच में करियर की शुरुआत 2014 को इंग्लैंड के खिलाफ वोर्म्स्ली पार्क में खेल के शुरू किया था। जिसमे इन्होने दो पारियों में 22 और 51 रन का योगदान दिया। स्मृति के नाम ने तब उचाइयां छूना शुरू कर दिया जब इन्होने 2017 में वर्ल्डकप के दौरान इंग्लैंड के खिलाफ 90 रन और वेस्ट इंडीज के खिलाफ 106 रन बना के अपनी टीम को फाइनल तक ले जाने में मदद की। अब इनको इनके प्रदर्शन के लिए पूरा विश्व जान चूका है।

विशेष उल्लेखनीय उपलब्धियां
सितंबर 2016 में, स्मृति ने ब्रिस्बेन हीट टूर्नामेंट के तत्कालीन संस्करण के लिए साइन करने के बाद महिला बिग बैश लीग में खेलने के लिए हस्ताक्षर करने वाली दूसरी भारतीय बन गयी। इस रिकॉर्ड में पहला नाम हरमनप्रीत कौर का है।

स्मृति को साल 2016 में ‘आईसीसी प्लेयर ऑफ द ईयर’ पुरुस्कार भी मिल चूका है। इस खिताब को पाने वाली ये पहली महिला खिलाड़ी हैं।

2018 में चेन्नई सुपरकिंग्स और सनराइजर्स हैदराबाद के बीच आईपीएल क्वालीफ़ायर राउंड से पहले महिला टी20 लीग की तर्ज पर एक प्रदर्शनी मैच का आयोजन किया था जिसमे स्मृति ने कप्तानी की थी।

स्मृति को इंग्लैंड की ‘किया सुपर लीग’ की मौजूदा चैम्पियन वेस्टर्न स्टॉर्म टीम ने जून 2018 अपने साथ जोड़ा है। मंधाना एक ऐसी पहली भारतीय महिला खिलाडी हैं जिन्हे इंग्लैंड की महिला टी-20 लीग के किसी क्लब से जुड़ने का मौका मिला है।

स्मृति को 25 सितम्बर 2018 को भारतीय सरकार ने "अर्जुन पुरुस्कार" से सम्मानित किया है।

*उपरोक्त "प्रशस्ति" दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा (माहेश्वरी अखाड़ा) द्वारा प्रकाशित दिव्य भूषण पुरस्कार 2018 की स्मारिका में स्मृति मानधना  के बारेमें  लिखी गई है।

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Maheshwari Samaj Pays Soulful Tribute To Sushama Swaraj | माहेश्वरी समाज ने सुषमा स्वराज को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की | Maheshwari Akhada

The Maheshwari community is also mourning the sad demise of Sushma Swaraj, a politician who was dedicated to humanity and human sensibilities and who incorporated Indian culture and values ​​in her life. Maheshwaris are paying tribute to him across the country. Maheshwari Akhada paid tribute to Sushma Swaraj ji on behalf of the entire Maheshwari community.

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मानवता और मानवीय संवेदनाओं के प्रति समर्पित, भारतीय संस्कृति और संस्कारों को अपने जीवन में उतारनेवाली राजनेता सुषमा स्वराज जी के दुखद निधन पर माहेश्वरी समाज में भी शोक व्यक्त किया जा रहा है। देशभर में उन्हें माहेश्वरी समाजजनों द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि समर्पित की जा रही है। माहेश्वरी अखाडा ने समस्त माहेश्वरी समाज की ओरसे सुषमा स्वराज जी को श्रद्धांजलि अर्पित की। 

माहेश्वरी अखाड़े के पीठाधिपति प्रेमसुखानंद माहेश्वरी ने उन्हें याद करते हुए कहा की पाकिस्तान का एक माहेश्वरी परिवार पाकिस्तान छोड़कर राजस्थान में बस गया था। इस परिवार की लड़की मशाल माहेश्वरी ने भारत के एक स्कुल में बारहवीं के एक्झाम दिए, 91% मार्क्स लिए लेकिन नागरिकता का सवाल आड़े आया जिसके कारन से, पाकिस्तानी होने के कारन उसे डॉक्टर बनने के लिए मेडिकल कॉलेज में एडमिशन नहीं मिल रहा था। जब यह बात माहेश्वरी अखाड़े के संज्ञान में आयी तो माहेश्वरी अखाड़े ने सुषमा स्वराज जी तक (जो की उस समय भारत की विदेशमंत्री थी) यह बात पहुंचाई और मानवीयता के आधारपर इन पर सहयोग करने की अपील की। इस मुद्दे को लेकर अखाड़े ने समाजजनों के साथ मिलकर सोशल मिडिया पर भी अभियान चलाया। और विदेशमंत्री के नाते सुषमा स्वराज जी ने इस पर व्यक्तिगत रूपसे ध्यान दिया और उस माहेश्वरी लड़की को भारत के प्रतिष्ठित कॉलेज में एडमिशन मिला। वो एक सदृदय राजनेता थी।

माहेश्वरी महासभा के सभापति श्याम सोनी जी, महासभा के महामंत्री संदीप काबरा जी, अंतरराष्ट्रीय माहेश्वरी कपल क्लब के संयोजक अशोक सोडानी जी, अखिल भारतवर्षीय माहेश्वरी युवा संगठन के राष्ट्रिय अध्यक्ष राजकुमार काल्या जी, लोकसभा सभापति ओम बिर्ला जी, भाजपा के राष्ट्रिय उपाध्यक्ष श्याम जाजू जी, राजस्थान की पूर्व मंत्री श्रीमती किरण माहेश्वरी जी, माहेश्वरी सेवा सदन के अध्यक्ष जुगलकिशोर बिर्ला जी, माहेश्वरी एकता टीवी के संपादक राजेश गिलड़ा जी, साहित्यिक शरद गोपीदास बागड़ी जी, रामकुमार भूतड़ा जी, राकेश जाजू जी, स्वरुप माहेश्वरी जी, शुभम माहेश्वरी जी, ओम चांडक जी, ललित धुत जी आदि समाज के अनेको पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं और समाजजनों ने सुषमा स्वराज जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। माहेश्वरी समाचार और हमारे पाठकों की ओरसे भी सुषमा स्वराज जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि ! एक सदृदय राजनेत्री के रूपमें सुषमा स्वराज की को इतिहास में चिरकाल तक याद किया जायेगा।

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